मन का प्यारा-सा आँगन
जब यादों से भर जाता है,
आरे में रखा ज्वलित दीपक भी
चुपके से बुझ जाता है,
अंधियारी घोर स्याह चादर
इस आँगन को ढँक लेती है,
खामोशी ईद मनाती है और
दिल गुमसुम हो जाता है।
गुमसुम दिल से टकराती हैं,
भूली बिसरी-सी यादों का
मंजर ताज़ा हो जाता है,
कुछ ताज़ा यादों का मंजर
बस सपना बन रह जाता है।
कुछ यादों की मृदुल घड़ियाँ
दिल दर पर दस्तक देती हैं,
तब सबसे प्यारे लम्हे भी
कांटे बन चुभने लगते हैं,
फिर दर्द थामने का जिम्मा
ये पागल दिल ले लेता है,
उस बेहाल अवस्था में
दुनियां सूनी-सी लगती है।
छल, कपट, स्वार्थमय अपना जग
बेगाना लगने लगता है,
बस यादें अपनी होती हैं
बाकी सब सपना लगता है
बाकी सब सपना लगता है।।